आप मित्रों में से कौन कौन ये बात जानता है कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी वास्तविकता में यूपी के "कुख्यात हत्यारे और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के चचेरे भाई है" साथ ही ये हामिद अंसारी जामिया मिलिया के संस्थापकों में से एक रहे तथा डॉन मुख्तार अंसारी के सगे दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी के भतीजे के बेटे यानि Grand Nephew है..??
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी जाने माने इस्लामिक कट्टरपंथी रहे है, खिलाफत आंदोलन के जनकों में से एक रहे हैं और काँग्रेस के प्रेसीडेंट रहे हैं तथा मोहनदास करमचंद गांधी के बहुत प्रिय रहे हैं।
"डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी खिलाफत आंदोलन के एक मुखर समर्थक थे और उन्होंने इस्लाम के खलीफा, तुर्की के सुल्तान को हटाने के मुस्तफा कमाल तथा ब्रिटिश राज के निर्णय के खिलाफ सरकारी खिलाफत निकाय, लीग और कांग्रेस पार्टी को एक साथ लाने और ब्रिटिश राज द्वारा तुर्की की आजादी की मान्यता का विरोध करने के लिए प्रमुख लीडर की तरह ही काम किया..!!
1927 के सत्र के दौरान वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. 1920 के दशक में लीग के भीतर अंदरूनी लड़ाई और राजनीतिक विभाजन और बाद में चौधरी खलीक उज्जमां, जिन्ना और मुस्लिम अलगाववाद के उभार के तथाकथित परिणाम स्वरूप डॉ॰ अंसारी महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी के करीब आ गए लेकिन यह आधा सच है वास्तविकता यह है कि डॉ. अंसारी (जामिया मिलिया इस्लामिया की फाउंडेशन समिति) के संस्थापकों में से एक थे और 1927 में इसके प्राथमिक संस्थापक, डॉ.हाकिम अजमल खान की मौत के कुछ ही समय बाद उन्होंने दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में भी काम किया,,
डा.अंसारी परिवार एक महलनुमा घर में रहता था जिसे उर्दू में 'दार उस सलाम' या अंग्रेजी में एडोबे ऑफ पीस कहा जाता था, महात्मा गांधी जब भी दिल्ली आते थे, डा.अंसारी परिवार ही अक्सर उनका स्वागत करता था और यह घर कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों का एक नियमित आधार था और डा. मुख्तार अहमद अंसारी महात्मा गांधी के बहुत करीबी थे जिस कारण गांधी व कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर, Two Nation Theory / द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत के तहत भारत विभाजन के बावजूद मुसलमानों को भारत में उनकी विलासी व आलीशान ‘विरासतों’ और धन संपत्ति से अलग नहीं होने दिया ...!!
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी जाने माने इस्लामिक कट्टरपंथी रहे है, खिलाफत आंदोलन के जनकों में से एक रहे हैं और काँग्रेस के प्रेसीडेंट रहे हैं तथा मोहनदास करमचंद गांधी के बहुत प्रिय रहे हैं।
"डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी खिलाफत आंदोलन के एक मुखर समर्थक थे और उन्होंने इस्लाम के खलीफा, तुर्की के सुल्तान को हटाने के मुस्तफा कमाल तथा ब्रिटिश राज के निर्णय के खिलाफ सरकारी खिलाफत निकाय, लीग और कांग्रेस पार्टी को एक साथ लाने और ब्रिटिश राज द्वारा तुर्की की आजादी की मान्यता का विरोध करने के लिए प्रमुख लीडर की तरह ही काम किया..!!
1927 के सत्र के दौरान वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. 1920 के दशक में लीग के भीतर अंदरूनी लड़ाई और राजनीतिक विभाजन और बाद में चौधरी खलीक उज्जमां, जिन्ना और मुस्लिम अलगाववाद के उभार के तथाकथित परिणाम स्वरूप डॉ॰ अंसारी महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी के करीब आ गए लेकिन यह आधा सच है वास्तविकता यह है कि डॉ. अंसारी (जामिया मिलिया इस्लामिया की फाउंडेशन समिति) के संस्थापकों में से एक थे और 1927 में इसके प्राथमिक संस्थापक, डॉ.हाकिम अजमल खान की मौत के कुछ ही समय बाद उन्होंने दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में भी काम किया,,
डा.अंसारी परिवार एक महलनुमा घर में रहता था जिसे उर्दू में 'दार उस सलाम' या अंग्रेजी में एडोबे ऑफ पीस कहा जाता था, महात्मा गांधी जब भी दिल्ली आते थे, डा.अंसारी परिवार ही अक्सर उनका स्वागत करता था और यह घर कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों का एक नियमित आधार था और डा. मुख्तार अहमद अंसारी महात्मा गांधी के बहुत करीबी थे जिस कारण गांधी व कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर, Two Nation Theory / द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत के तहत भारत विभाजन के बावजूद मुसलमानों को भारत में उनकी विलासी व आलीशान ‘विरासतों’ और धन संपत्ति से अलग नहीं होने दिया ...!!
अमित कुमार शुक्ला ''प्रचण्ड''
गोरखपुर उत्तर प्रदेश
+91-8052402445
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