भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों की समस्या यह है कि इन लोगों ने अपनी पूजा-पद्धति तो बदली ही साथ ही खुद को अपने अतीत, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों से भी काट लिया और खुद को जबरदस्ती अरब से जोड़ लिया।
हजरत सर्इद इब्न अबी वक्कास रिवायत करतें हैं, नबी (सल्ल0) ने फरमाया कि जिसने अपनी जात बदल ली, हालांकि उसको ये इल्म है कि ये मेरी जात नही तो जन्नत उसपर हराम है। (बुखारी व मुसिलम)
भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों में कर्इ लोग हैं जो खुद को कुरैशी, शेख, सैयद, अब्बासी आदि वंश के बतलातें हैं जबकि ये तो अरब के कबीलों के नाम हैं, डा. हम्जा अहमद अज-जियान ने हिमायतुल अंसाब फी शरीयतील इस्लामिया नाम से एक किताब भी लिखी है इस किताब में उन्होंनें कर्इ हदीसो का हवाला देते हुये लिखा कि अपने पूर्वजों से खुद को काट लेना कुफ्र है उन्होंनें अपनी किताब में न केवल पूर्वजों से संबंध विच्छेद करने वाले को हदीसों के हवाले से काफिर कहा है बल्कि उन लोगों के लिये भी इस वाक्य का इस्तेमाल किया है जो खुद को उस वंश से जोड़ लेता है जिस वंश का वो है ही नहीं भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज समान है, ये निर्विवाद सत्य है इसलिये अपनी वंश-परंपरा यहां से जोड़ना इस्लाम का हुक्म है।
आज के भारतीय मुसलमान एक काम ये भी करतें हैं कि अपना नाम भी बदल कर लेतें हैं जबकि अपना नाम अपने पूर्वजों के नाम पर रखना और अपने नाम में पूर्वजों के नाम को शामिल रखना भी रसूल (सल्ल0) के सुन्नतों में हैं और कुरान का हुक्म है, सही बुखारी और सही मुसिलम में हजरत अबू हुरैरा से रिवायत एक हदीस है जिसमें नबी (सल्ल0) फरमातें हैं, जिसने मुँह मोड़ा अपने बाप-दादा से तो उसने काफिर का काम किया और कुफ्र किया यानि इंसान को अपनी निस्बत अपने बाप-दादाओं की तरफ करनी चाहिये। इतना ही नहीं है एक हदीस में नबी ने फरमाया |
"बेशक तुम कयामत के दिन अपने नाम और बापों ,पूर्वजों के नाम से ही पुकारे जाओगे"
(इमाम अहमद, अबू दाऊद, जिल्द 3, बाब- 485, हदीस- 1513,सफा-550)
यानि तुम्हारा मजहब इस्लाम भी हो पर कयामत के दिन तुम्हरा नाम तुम्हारे बाप-दादाओं के साथ ही लिया जायेगा। महज इसलिये अपना नाम अपने बाप दादा के नाम पर नहीं रखना कि वो हिंदू थे या गैर-मुसिलम थे गलत है।
नाम बदलने और अपने पूर्वजों को विस्मृत करने का चलन अफगानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप में ज्यादा है, दुनिया के बाकी इस्लामी देशों में ऐसा नहीं है।
मजहब के रुप में इस्लाम को चुनने के बाबजूद उन्हानें अपने पूर्वजों को विस्मृत नहीं किया है इस मामले में इंडोनेशिया एक मिसाल है बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी वाले इस देश के लोगों के नामों को देखकर हैरानी होती है पर इंडोनेशियार्इ लोगों ने अपने पूर्वजों को स्मरण करने का एक ये भी उत्कृष्ट चलन कायम रखा है, इस्लाम के आने से पूर्व इंडोनेशिया में हिंदू धर्म का बोलबाला था इसलिये वहां के मुस्लिमों के नामों में संस्कृत शब्द देखने को मिलते हैं,, सुहार्तो, सुकर्ण, मेधावती सुकर्णोपुत्री आदि वहां के राष्ट्राध्यक्षों के नाम रहें हैं।
वहां के मुसलमानों के संस्कृतनिष्ठ नामों को देखकर दुनिया के दूसरे देशों के मुसलमान जब उनसे पूछतें हैं कि ये काफिरों वाला नाम क्यों रखा? तो उनका जवाब होता है, 'कुछ पीढ़ी पहले हमने उपासना पद्धति / मजहब बदला होगा परंतु इससे बाप-दादा और उनके मजहब और हमारी मूल पहचान संस्कृति और विरासत तो नहीं बदलते है ना..बाप-दादाओं की स्मृति ,परंपरा और विरासत को कायम रखने का यह सर्वोत्कृष्ट पद्धति है'
वहां के राष्ट्रपति सुकर्ण से जब बीजू पटनायक ने पूछा कि आपका नाम सुकर्ण क्यों रखा गया? तो उन्होंनें कहा कि उनके पिता महाभारत का नियमित पारायण करते थे और उनका प्रिय पात्र कर्ण था पर चूंकि वह युद्ध में असत्य और अधर्म के साथ खड़ा हुआ था इसलिये मेरे पिता ने कर्ण के नाम में सुकर्ण लगाकर मेरा नाम रख दिया।
इसलिये ऐ अरबी नाम लगा कर जबरदस्ती शेख, सय्यद, मुगल पठान, अलवी, अंसारी, खान, कुरैशी वगैरह वगैरह बनते बे'ईमानवालों याद रखो कि प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्यादा हो और पाप और गुनाह के कारण उसकी गम्भीरता बढ़ जाती है इसी प्रकार प्रत्येक कार्य जिस में लिप्त व्यक्ति के लिए सजा या लानत (धिक्कारित) या अल्लाह के क्रोध का वादा किया गया हो उसे महापाप या शिर्क ही कहते हैं और अपने मूल बुजुर्गों - सहाबियों की पहचान को नकार कर मुसलमान - मुसलसल ईमान वाले नहीं बन सकते हाँ मुशिरकों में शुमार किये जाओगे क्योकि 'तुम्हारे नाम ही बिदअत' हैं, सनद रहे! इसी संदर्भ में नीचे दी गई हदीस पढें भारत के मुसलोईड्स -
رَسُولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم: إِنَّ مِنْ أَكْبَرِ الْكَبائِرِأَنْ يَلْعَنَ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قِيلَ يا رَسُولَ اللهِ وَكَيْفَ يَلْعَنُ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قَالَ: يَسُبُّ الرَّجُلُ أَبا الرَّجُلِ فَيَسُبُّ أَباهُ وَيَسُبُّ أُمَّهُ). صحيح أبي داؤد الألباني 5141)
अबदुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः “ बेशक सब से बड़े गुनाह में से है कि व्यक्ति अपने माता-पिता को गाली दे, लोगों ने आश्चर्य से पूंछा, क्या कोई अपने माता पिता को गाली देता है, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के पिता को गाली देता है तो वह उस के पिता को गाली देता है और उस के माता को गाली देता है।”
(सही अबू दाऊदः हदीस 5141)
हजरत सर्इद इब्न अबी वक्कास रिवायत करतें हैं, नबी (सल्ल0) ने फरमाया कि जिसने अपनी जात बदल ली, हालांकि उसको ये इल्म है कि ये मेरी जात नही तो जन्नत उसपर हराम है। (बुखारी व मुसिलम)
भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों में कर्इ लोग हैं जो खुद को कुरैशी, शेख, सैयद, अब्बासी आदि वंश के बतलातें हैं जबकि ये तो अरब के कबीलों के नाम हैं, डा. हम्जा अहमद अज-जियान ने हिमायतुल अंसाब फी शरीयतील इस्लामिया नाम से एक किताब भी लिखी है इस किताब में उन्होंनें कर्इ हदीसो का हवाला देते हुये लिखा कि अपने पूर्वजों से खुद को काट लेना कुफ्र है उन्होंनें अपनी किताब में न केवल पूर्वजों से संबंध विच्छेद करने वाले को हदीसों के हवाले से काफिर कहा है बल्कि उन लोगों के लिये भी इस वाक्य का इस्तेमाल किया है जो खुद को उस वंश से जोड़ लेता है जिस वंश का वो है ही नहीं भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज समान है, ये निर्विवाद सत्य है इसलिये अपनी वंश-परंपरा यहां से जोड़ना इस्लाम का हुक्म है।
आज के भारतीय मुसलमान एक काम ये भी करतें हैं कि अपना नाम भी बदल कर लेतें हैं जबकि अपना नाम अपने पूर्वजों के नाम पर रखना और अपने नाम में पूर्वजों के नाम को शामिल रखना भी रसूल (सल्ल0) के सुन्नतों में हैं और कुरान का हुक्म है, सही बुखारी और सही मुसिलम में हजरत अबू हुरैरा से रिवायत एक हदीस है जिसमें नबी (सल्ल0) फरमातें हैं, जिसने मुँह मोड़ा अपने बाप-दादा से तो उसने काफिर का काम किया और कुफ्र किया यानि इंसान को अपनी निस्बत अपने बाप-दादाओं की तरफ करनी चाहिये। इतना ही नहीं है एक हदीस में नबी ने फरमाया |
"बेशक तुम कयामत के दिन अपने नाम और बापों ,पूर्वजों के नाम से ही पुकारे जाओगे"
(इमाम अहमद, अबू दाऊद, जिल्द 3, बाब- 485, हदीस- 1513,सफा-550)
यानि तुम्हारा मजहब इस्लाम भी हो पर कयामत के दिन तुम्हरा नाम तुम्हारे बाप-दादाओं के साथ ही लिया जायेगा। महज इसलिये अपना नाम अपने बाप दादा के नाम पर नहीं रखना कि वो हिंदू थे या गैर-मुसिलम थे गलत है।
नाम बदलने और अपने पूर्वजों को विस्मृत करने का चलन अफगानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप में ज्यादा है, दुनिया के बाकी इस्लामी देशों में ऐसा नहीं है।
मजहब के रुप में इस्लाम को चुनने के बाबजूद उन्हानें अपने पूर्वजों को विस्मृत नहीं किया है इस मामले में इंडोनेशिया एक मिसाल है बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी वाले इस देश के लोगों के नामों को देखकर हैरानी होती है पर इंडोनेशियार्इ लोगों ने अपने पूर्वजों को स्मरण करने का एक ये भी उत्कृष्ट चलन कायम रखा है, इस्लाम के आने से पूर्व इंडोनेशिया में हिंदू धर्म का बोलबाला था इसलिये वहां के मुस्लिमों के नामों में संस्कृत शब्द देखने को मिलते हैं,, सुहार्तो, सुकर्ण, मेधावती सुकर्णोपुत्री आदि वहां के राष्ट्राध्यक्षों के नाम रहें हैं।
वहां के मुसलमानों के संस्कृतनिष्ठ नामों को देखकर दुनिया के दूसरे देशों के मुसलमान जब उनसे पूछतें हैं कि ये काफिरों वाला नाम क्यों रखा? तो उनका जवाब होता है, 'कुछ पीढ़ी पहले हमने उपासना पद्धति / मजहब बदला होगा परंतु इससे बाप-दादा और उनके मजहब और हमारी मूल पहचान संस्कृति और विरासत तो नहीं बदलते है ना..बाप-दादाओं की स्मृति ,परंपरा और विरासत को कायम रखने का यह सर्वोत्कृष्ट पद्धति है'
वहां के राष्ट्रपति सुकर्ण से जब बीजू पटनायक ने पूछा कि आपका नाम सुकर्ण क्यों रखा गया? तो उन्होंनें कहा कि उनके पिता महाभारत का नियमित पारायण करते थे और उनका प्रिय पात्र कर्ण था पर चूंकि वह युद्ध में असत्य और अधर्म के साथ खड़ा हुआ था इसलिये मेरे पिता ने कर्ण के नाम में सुकर्ण लगाकर मेरा नाम रख दिया।
इसलिये ऐ अरबी नाम लगा कर जबरदस्ती शेख, सय्यद, मुगल पठान, अलवी, अंसारी, खान, कुरैशी वगैरह वगैरह बनते बे'ईमानवालों याद रखो कि प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्यादा हो और पाप और गुनाह के कारण उसकी गम्भीरता बढ़ जाती है इसी प्रकार प्रत्येक कार्य जिस में लिप्त व्यक्ति के लिए सजा या लानत (धिक्कारित) या अल्लाह के क्रोध का वादा किया गया हो उसे महापाप या शिर्क ही कहते हैं और अपने मूल बुजुर्गों - सहाबियों की पहचान को नकार कर मुसलमान - मुसलसल ईमान वाले नहीं बन सकते हाँ मुशिरकों में शुमार किये जाओगे क्योकि 'तुम्हारे नाम ही बिदअत' हैं, सनद रहे! इसी संदर्भ में नीचे दी गई हदीस पढें भारत के मुसलोईड्स -
رَسُولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم: إِنَّ مِنْ أَكْبَرِ الْكَبائِرِأَنْ يَلْعَنَ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قِيلَ يا رَسُولَ اللهِ وَكَيْفَ يَلْعَنُ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قَالَ: يَسُبُّ الرَّجُلُ أَبا الرَّجُلِ فَيَسُبُّ أَباهُ وَيَسُبُّ أُمَّهُ). صحيح أبي داؤد الألباني 5141)
अबदुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः “ बेशक सब से बड़े गुनाह में से है कि व्यक्ति अपने माता-पिता को गाली दे, लोगों ने आश्चर्य से पूंछा, क्या कोई अपने माता पिता को गाली देता है, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के पिता को गाली देता है तो वह उस के पिता को गाली देता है और उस के माता को गाली देता है।”
(सही अबू दाऊदः हदीस 5141)
अमित कुमार शुक्ला ''प्रचण्ड''
गोरखपुर उत्तर प्रदेश
+91-8052402445
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