यह देश एक भव्य चुटकुला है और इसके सारे नागरिक उस चुटकुले के पात्र। अगर आपने इसकी स्थितियों पर हंसना मात्र नहीं सीख लिया, तो फिर आपकी अकाल-मृत्यु तय है।
देखिए, ज़रा 22 साल का एक लौंडा पूरी सरकार को बंधक बना लेता है, एंटरटेनमेंट चैनल के भांड़ और नायिकाएं उसे रातोंरात नायक बना देते हैं, जिसे खुद ही पता नहीं कि वह आखिर मांग क्या रहा है?
यह नायक अभी विज़ुअल-स्पेस बटोर ही रहा होता है कि मसालेदार, चटपटा, तीखा शीना बोरा मर्डर केस सामने आता है और यह पूरा देश उसके नशे में झूमने लगता है।
दरअसल, 823 वर्षों की गुलामी के बाद जब हमें कागज़ी आज़ादी मिली, तो महान मठाधीशों ने उस आज़ादी की जड़ में मट्ठा डाल दिया। सारा कुछ ही उलट-पुलट।
आरक्षण की पूरी व्यवस्था ही उसके असल उद्देश्य के उलट कर दी गयी। आपने शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन जैसे बुनियादी मसलों में आरक्षण नहीं दिया, एक निहायत ही उल्टी व्यवस्था में प्रवेश-परीक्षाओं में आरक्षण दिया, जहां रामविलास पासवान के बेटे को भी वही लाभ मिलेगा, जो मंगरू पासवान या छेदी हज़ारी को मिलेगा। दुष्परिणाम ऐसे निकले कि 4 नंबर लाकर लोग डॉक्टर-इंजीनियर बनने लगे, 90 नंबर वाले को प्रवेश नहीं मिला।
आपने अभी भी आरक्षण नीति की समीक्षा नहीं की। आप अपनी राजनीति के लिए पूरे देश को आग में झोंक देंगे। वी पी सिंह से लेकर मुसलमानों के लिए आऱक्ष मांगनेवाले तक एक ही हैं।
उलटबांसी की हद जनसंख्या संबंधी आंकड़ों पर प्रतिक्रिया में देखिए। भाई, मुसलमान हों या हिंदू- इस देश ने अपनी औकात से बहुत अधिक लल्लू-पंजू पैदा कर लिए हैं। आचार्य रजनीश की एक बात से तो बिल्कुल सहमत हो जाना चाहिए कि यह देश अगले 20 वर्षों तक एक भी बच्चा या बच्ची पैदा नहीं करे, तो भी कोई नुकसान नहीं है। लेकिन नहीं, भांड़ों ने इसे भी धार्मिक एंगल दे दिया।जनसंख्या विस्फोट नासूर बन चुका है, लेकिन नश्तर कोई नहीं लगाएगा। सबसे बड़ा चुटकुला यह कि अल्पसंख्यक का पर्याय मुसलमान हैं- लगभग 15 फीसदी आबादी के साथ, जबकि मेरी जानकारी में 10 फीसदी से अधिक जिस समुदाय की आबादी हो, वह अल्पसंख्यक के वर्गीकरण से बाहर आ जाता है।
हमारे महान प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जिस घाव को शाहबानो-मामले के बहाने छेड़ दिया था, वह आज कैंसर हो चुका है। साहब, आप मुसलमानों को तो पर्सनल लॉ देंगे, लेकिन जैनियों के संथारा पर रोक लगाएंगे। इसके बाद अगर जैन सड़कों पर उतर जाएं, आपका जीना मुहाल कर दें, तो गलती किसकी??
संथारा का मैं समर्थक नहीं, ना ही मुझे जैन धर्म की समझ है। एक सीधी सी बात है- आपको यूनिफॉर्म सिविल कोड में दिक्कत क्या है??
बहरहाल, यह सबकुछ एक दूरस्थ स्वप्न और अबूझ पहेली है। पूरा कुछ भी नहीं होगा।
इसलिए, तुष्टीकरण जिंदाबाद और भव्य चुटकुले पर हंसते रहिए....हंसाते रहिए...आप भारतवर्ष नामक विडंबना के निवासी जो हैं.....
देखिए, ज़रा 22 साल का एक लौंडा पूरी सरकार को बंधक बना लेता है, एंटरटेनमेंट चैनल के भांड़ और नायिकाएं उसे रातोंरात नायक बना देते हैं, जिसे खुद ही पता नहीं कि वह आखिर मांग क्या रहा है?
यह नायक अभी विज़ुअल-स्पेस बटोर ही रहा होता है कि मसालेदार, चटपटा, तीखा शीना बोरा मर्डर केस सामने आता है और यह पूरा देश उसके नशे में झूमने लगता है।
दरअसल, 823 वर्षों की गुलामी के बाद जब हमें कागज़ी आज़ादी मिली, तो महान मठाधीशों ने उस आज़ादी की जड़ में मट्ठा डाल दिया। सारा कुछ ही उलट-पुलट।
आरक्षण की पूरी व्यवस्था ही उसके असल उद्देश्य के उलट कर दी गयी। आपने शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन जैसे बुनियादी मसलों में आरक्षण नहीं दिया, एक निहायत ही उल्टी व्यवस्था में प्रवेश-परीक्षाओं में आरक्षण दिया, जहां रामविलास पासवान के बेटे को भी वही लाभ मिलेगा, जो मंगरू पासवान या छेदी हज़ारी को मिलेगा। दुष्परिणाम ऐसे निकले कि 4 नंबर लाकर लोग डॉक्टर-इंजीनियर बनने लगे, 90 नंबर वाले को प्रवेश नहीं मिला।
आपने अभी भी आरक्षण नीति की समीक्षा नहीं की। आप अपनी राजनीति के लिए पूरे देश को आग में झोंक देंगे। वी पी सिंह से लेकर मुसलमानों के लिए आऱक्ष मांगनेवाले तक एक ही हैं।
उलटबांसी की हद जनसंख्या संबंधी आंकड़ों पर प्रतिक्रिया में देखिए। भाई, मुसलमान हों या हिंदू- इस देश ने अपनी औकात से बहुत अधिक लल्लू-पंजू पैदा कर लिए हैं। आचार्य रजनीश की एक बात से तो बिल्कुल सहमत हो जाना चाहिए कि यह देश अगले 20 वर्षों तक एक भी बच्चा या बच्ची पैदा नहीं करे, तो भी कोई नुकसान नहीं है। लेकिन नहीं, भांड़ों ने इसे भी धार्मिक एंगल दे दिया।जनसंख्या विस्फोट नासूर बन चुका है, लेकिन नश्तर कोई नहीं लगाएगा। सबसे बड़ा चुटकुला यह कि अल्पसंख्यक का पर्याय मुसलमान हैं- लगभग 15 फीसदी आबादी के साथ, जबकि मेरी जानकारी में 10 फीसदी से अधिक जिस समुदाय की आबादी हो, वह अल्पसंख्यक के वर्गीकरण से बाहर आ जाता है।
हमारे महान प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जिस घाव को शाहबानो-मामले के बहाने छेड़ दिया था, वह आज कैंसर हो चुका है। साहब, आप मुसलमानों को तो पर्सनल लॉ देंगे, लेकिन जैनियों के संथारा पर रोक लगाएंगे। इसके बाद अगर जैन सड़कों पर उतर जाएं, आपका जीना मुहाल कर दें, तो गलती किसकी??
संथारा का मैं समर्थक नहीं, ना ही मुझे जैन धर्म की समझ है। एक सीधी सी बात है- आपको यूनिफॉर्म सिविल कोड में दिक्कत क्या है??
बहरहाल, यह सबकुछ एक दूरस्थ स्वप्न और अबूझ पहेली है। पूरा कुछ भी नहीं होगा।
इसलिए, तुष्टीकरण जिंदाबाद और भव्य चुटकुले पर हंसते रहिए....हंसाते रहिए...आप भारतवर्ष नामक विडंबना के निवासी जो हैं.....
अमित कुमार शुक्ला ''प्रचण्ड''
गोरखपुर उत्तर प्रदेश
+91-8052402445
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