Baba Prachand Nath

Baba Prachand Nath
Amit Shukla GKP

रविवार, 6 सितंबर 2015

फिर से प्रासंगिक

फिर से प्रासंगिक लग रहा है 
----------------------
।। फेकं असत्यं सेक्युलरा: सदैव जपन्ति ।। 29 May 2015
सबसे बड़ा असत्य - एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति |
(अर्थात - सत्य एक ही है, विद्वान उसे अलग अलग नाम देते हैं। )
यह श्लोक अपने आप में असत्य नहीं है। असत्य है तो आज के समय में उसका प्रयोग। झूठ बोलने का उदहारण इस से बड़ा शायद ही दूसरा मिलेगा। इसे Kitman कहा जा सकता है। Kitman क्या होता है गूगलिए, रोचक जानकारी मिलेगी । वैसे संक्षेप में बता दूँ, शांतीपूर्ण तरीके से झूठ बोलने के जो जायज तरीके हैं उनमें से एक Kitman हैं ।
देखते हैं ये श्लोक मूल रूप में क्या है ।
इन्द्रं॑ मि॒त्रं वरु॑णम॒ग्निमा॑हु॒रथो॑ दि॒व्यः स सु॑प॒र्णो ग॒रुत्मा॑न् ।
एकं॒ सद्विप्रा॑ बहु॒धा व॑दन्त्य॒ग्निं य॒मं मा॑त॒रिश्वा॑नमाहुः ॥४६॥
The translation of the verse is:
46। They called him Indra, Mitra, Varuṇa, Agni; yea, he is heavenly Garuḍa, who has beautiful wings। That which is One, the sages speak of as Multifarious; they called him Agni, Yama, Mātariśvan.
अर्थात एक ही देवता के बहुविध रूप और उनके अनुरूप नाम । विद्वानों को (विप्र) जिस जिस रूप में इसका साक्षात्कार हुआ, उस अलग अलग रूप को उन्होने अपने अपने अनुभव के आधार पर अलग अलग नाम दिये । लेकिन देवता एक ही । लेकिन जहाँ विधर्मी धर्मं प्रचारक हिन्दुओं को भटका रहे हैं, तो क्या उनके मुंह में यह सत्य है?
निर्गुण ब्रह्म की परिकल्पना हमारे भारत में सहस्रों वर्षों से है, लेकिन क्या इन विधर्मियों की ईश्वर की कल्पना सत्य में निराकार निर्गुण की है? उत्तर है – बिलकुल नहीं ! वे १०००% झूठ बोल रहे हैं ! उनका परमेश्वर – गॉड कहो या अल्लाह – बस अपने भक्तों को उसके दर्शन से मना करता है ऐसे उनके प्रेषितों का कहना है ऐसा उनके धर्म ग्रंथों में लिखा हुआ है।
बाकी इनके ग्रंथों के मुताबिक़ उसकी जगह निश्चित है, जहाँ उसका Throne है – सिंहासन भारतीय संस्कृति में होता है, वहां throne होता है। वर्णन विशेष अलग होता है। उस पर वो बिराजमान होता है, अपने angels / फरिश्तों को हुक्म देता हैं, उसे सब फ़रिश्ते, जिन्न सलाम करते रहते हैं, उसके प्रशंसा के गीत गाते रहते हैं।
और तो और, वो आप पर CCTV से भी ज्यादा पैनी नजर रखता है, आप के प्राइवेट से भी प्राइवेट क्षण की उसके पास पूरा रेकॉर्ड होता है (सब जानता है) और इस कारण आप को उस से हमेशा डरे डरे रहना होता है। आप ने अगर उसे छोड़ कर किसी और को चाहा या ज़रा इंटरेस्ट से देखा भी तो वो आप का बुरा हाल कर देगा, आप का ही नहीं, आप के पोते, नाती का भी – Ten Commandments पढ़ी हैं कभी? आप कुछ भी हो, उसकी स्तुति ही करते रहो तो हो सकता है वो आप को मालामाल भी कर देगा, या बिना तकलीफ के जीने देगा। इस जन्म की गलतियाँ सुधारने का चांस नहीं, जब क़यामत / Judgment Day आएगी तब तक आप को सजा का खौफ पाल कर जमीन के भीतर सड़ते रहना होगा। हाँ, बदमाश से बदमाश आदमी अगर ऐश कर रहा है और साथ साथ लोगों पर जुल्म ढा रहा है तो ये इनका परमेश्वर उसे ऐसे क्यूँ करने देता है इसका इनके पास जवाब न होता है और न ये आप को ऐसे सवाल करने देते हैं। आप उसे कभी देख नहीं पायेंगे, जान नहीं पायेंगे, मनुष्य और उसके बीच उनके प्रोफेट / नबी / रसूल हैं। आप तो उनतक भी नहीं जा पायेंगे , आप की दौड़ का दायरा आप का स्थानिक पादरी / मुल्ला तय करेगा।
क्या यह संकल्पना निराकार निर्गुण ब्रह्म की है या कोई जुल्मी तानाशाह की? भले हिन्दुओं के ३३ करोड़* देवता सत्य हों या न हों, क्या आप को लगता है कि हमारा और इनका सत्य एक हो सकता है ? सिर्फ इनके यह कहने पर कि देखिये आप के ग्रंथों में भी यही लिखा है जो हम कह रहे हैं – उसका कोई जोड़ नहीं, पर्याय नहीं, वो अकेला ही है, सर्व शक्तिमान है, उसकी कोई प्रतिमा नहीं – झूठ बोलने की भी हद होती है भाई, और अगर ऐसे झूठ की तुम्हारे धर्म में सजा नहीं है, तो क्यों न हम ही तुम्हे सजा दें? चलो, ‘ममता’पूर्ण तरीके से देंगे ! (*33 कोटी होते हैं, 33 करोड़ नहीं)
जागो ! ये “एकं सत्य” नहीं, ये तो “फेकं असत्य” है ! जूता ही निकालो इनके स्वागत में !
हाँ, एक बात याद आई, मैं तो भूल ही रहा था ! ये शुरुआत बड़े मीठे ढंग से करते हैं, सेल्समन जो ठहरे ! आप से सहमति जतलानेवाला सवाल करेंगे कि क्या आप सभी धर्मों को सत्य मानते हैं? आप ने शराफत और भोलेपन से हाँ कर दी तो उन्होंने एक पायदान जीत ली। फिर पूछेंगे, आप के धर्म कि कोई आसमानी किताब है? आप नहीं कहेंगे तो फिर अपने आसमानी किताब की तारीफ़ शुरू हो जायेगी। आप अगर कोई ग्रन्थ का नाम देंगे तो कहेंगे वो आसमानी नहीं है, इसलिए उसका खंडन करेंगे।
तो भाई इसका एक ही जवाब है जो कड़े शब्दों में देना होगा – “आप जो मुझे कह रहे हैं, ये आप की और आप के समुदाय की मान्यता है। सिर्फ इतने अब्ज आदमियों के मानने से बात सत्य नहीं होती, हालांकि संख्या का उपयोग दूसरों को उल्लू बनाने के काम भी होता है, फ्रॉड लोग हमेशा उनके स्कीम में मालामाल होनेवालों का दाखिला देते रहते हैं। अब आप मेरा समय जाया न करें, दरवाजा सामने है । ”
इस आलेख को save कर रक्खें, शेयर करें । कभी न कभी ऐसा कोई प्राणी आप से टकराएगा और तर्क देना चालू करेगा। आप उसे ये पोस्ट पढ़वाकर रुखसत करें। डिसेंट होगा तो कहेगा कि आप परमेश्वर के मेहरबानी से वंचित रह रहे हो मुझे आप पर तरस आता है – कुछ नहीं भाई, उसका टार्गेट पूरा नहीं हो रहा है। उनको बाकायदा सेल्समन की ट्रेनिंग दी जाती है। नहीं तो आप पर नेगेटिव सोच होने का आरोप लगाएगा। क्या भाई, आप की मानूँ तो ही मैं पॉजिटिव हुआ? 

जूता !



गोरखपुर उत्तर प्रदेश 
+91-8052402445

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें